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क्या ईश्वर का कोई आकार है?

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क्या ईश्वर का कोई आकार है?

या फिर वह निराकार है?

या ईश्वर केवल एक आस्था, मन की भावना और भक्ति का नाम है?


ऐसे कई विचार दिल व दिमाग में आते हैं। जिनके उत्तर अक्सर अपने ज्ञान के अनुसार ढूंढ़ने की चेष्टा करते हैं। क्या सच में किसी ने ईश्वर को देखा है? आज अनेक धार्मिक गुरू इस बात का दावा करते हैं कि उन्होंने ईश्वर को देखा है व उनका अक्सर ईश्वर से साक्षात्कार होता रहता है। चाहे वे किसी भी धर्म, साधना या आस्था से जुड़े हों पर क्या उनकी बातों पर आसानी से विश्वास कर लेना चाहिए या फिर उनको भी अपनी तर्क शक्ति के आधार पर परखना चाहिए? ऐसे कई विषय व विचार मस्तिष्क में आते हैं इस पर सोचने के लिए विवश करते हैं। ईश्वर कौन है? जिसने इस संसार का, अनेकानेक आकाशगंगाओं का, ग्रहों का नक्षत्रों का निर्माण किया है। क्या यह सही है कि ऐसी कोई शक्ति थी जिसने इन सबका निर्माण किया। क्या सच में वह शक्ति आज के आधुनिक युग के सभी बुद्धिजीवियों की सोच से आगे थी जिसने जीव, प्राणी व प्रकृति के संतुलन को उनके अवतीर्ण होने से पहले समझा और जाना था और न केवल समझा था बल्कि उसके संतुलन के अनुसार उसकी संरचना भी की थी। ऐसे कई सवाल दिमाग में आते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं कि ईश्वर क्या है? आखिर कोई तो ऐसी शक्ति है जो इस व्यापक निर्माण की कारक है। प्राकृतिक संपदा को देखें तो इनके गुण व सुंदरता किसी शक्ति की सोच को बताते हैं। चाहे फिर मन को मोहने वाले फल-फूलों के रंग हों या इनके गुण, जिन्होंने इन्हें इतना कोमल, सुगन्धित व गुणों से भरपूर बनाया। अगर वन्य संपदा को देखें, वृक्ष हमारी हर जरूरत को पूरा करने और परेशानी से उबारने की क्षमता रखते हैं। ये पर्वत, पहाड़, नदी, नहरें, झीलें किसने बनाई, प्राणी, जीव-जन्तु आदि को किसने बनाया? अपने विकास की गाथा को इतिहास के पृष्ठ पलट कर ढूंढते हैं और कहते हैं कि पूर्वज बंदर थे और उन्हीं की विकसित प्रजाति अब हैं लेकिन क्या मानव प्रजाति के विकास के बाद, विकास का रास्ता अवरुद्ध हो गया था फिर क्यों अन्य प्रजातियां विकसित नहीं हुई ऐसे कई प्रश्न दिमाग में कौंधते है? विज्ञान ने बहुत प्रगति की है।चीजों को बनाने की क्षमता विज्ञान द्वारा हासिल हुई है।

परंतु इस विज्ञान से क्या एक और ऐसी ही सृष्टि का निर्माण कर सकते हैं? हजारों वर्षों से प्रकृति को समझने की कोशिश कर रहे हैं और काफी हद तक उसमें सफलता भी हासिल की है पर क्या इसका निर्माण करने में सक्षम हैं और अगर हैं तो क्या यह सृष्टि उस विज्ञान की ही देन है जो आज के विज्ञान से काफी उच्च स्तर की और व्यापक थी, जिसकी सोच व शक्ति आज के विज्ञान से काफी आगे थी? और अगर नहीं तो उस ज्ञान और शक्ति के भंडार का नाम ही ईश्वर है जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया जो किसी धर्म या जाति के बंधन से बंधा नहीं था, बल्कि वह एक सर्व व्यापक शक्ति है। वर्तमान युग की विभिन्न आस्थाओं से प्रेरित लोगों ने उसे धर्म और जाति का नाम दे दिया।

विज्ञान जब किसी वस्तु विशेष का निर्माण करता तो वह वस्तु वैज्ञानिक आधार पर बनी होती है। जिसमें पूर्व-निर्धारित गुण-धर्म होते हैं और वह हमेशा एक जैसी परिस्थिति में एक ही तरह से कार्य करती चाहे फिर वह रोबोट हो, कम्प्यूटर हो या फिर आधुनिक युग का कोई अविज्ञान जब किसी वस्तु विशेष का निर्माण करता तो वह वस्तु वैज्ञानिक आधार पर बनी होती है। जिसमें पूर्व-निर्धारित गुण-धर्म होते हैं और वह हमेशा एक जैसी परिस्थिति में एक ही तरह से कार्य करती चाहे फिर वह रोबोट हो, कम्प्यूटर हो या फिर आधुनिक युग का कोई अन्य यंत्र। परन्तु जीव/प्राणियों में यह दिलो-दिमाग का कौन-सा जोड़ है, संबंध है, जो हर जीव एक समान परिस्थिति में भी अलग-अलग प्रतिक्रिया देता है या अलग-अलग विचार रखता है। क्यों प्राणियों में प्यार, दया, दर्द, काम, क्रोध, द्वेष जैसे गुण व भाव मौजूद हैं? क्यों सभी एक समान होते भी एक-दूसरे से रूप और विचारों में भिन्न हैं? यह सब गुण जीवों में किसने डाले? क्या आज का आधुनिक विज्ञान इस कार्य को करने में कभी सक्षम हो पाएगा? यदि हाँ, तो ईश्वर अतीत का विकसित विज्ञान था और यदि नहीं, तो ईश्वर वह अलौकिक शक्ति थी जो न कभी पैदा हुई, न उसका कभी अन्त होगा। वह निराकार, अविनाशी शक्ति है और वह चिरकाल तक यूं ही बनी रहेगी तथा इस सृष्टि के कण-कण में बसी रहेगी जिसका निर्माण उसने स्वयं किया है। यदि वास्तव में उस शक्ति को ढूंढना है जिसे ईश्वर कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ एक नियंत्रक के रूप में देखा जाता है, तो उसे उसके द्वारा बनाई हर वस्तु विशेष में ढूंढा जा सकता है, क्योंकि वह इस सृष्टि के कण-कण में विद्यमान है जिसे ध्यान एवं भक्ति के बल पर अपने अंतर्मन में और इस संसार में सर्वत्र ढूंढा जा सकता है? मनुष्य अनेक विचारधाराओं को मानते हैं जिन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है।

इनके नाम तो अलग-अलग है पर इन सभी विचारधाराओं का उद्देश्य एक ही है - उस परमशक्ति परमेश्वर या ईश्वर से मिलन, जिसके लिये भिन्न-भिन्न भक्ति और आस्था के मार्ग अपनाते हैं और अपने मार्गों को अलग-अलग नाम देकर अपने को एक-दूसरे से अलग-अलग मानने व समझने लगते हैं। एक ही मानव जाति के होते हुए भी खुद को अनेक नामों में (धर्म, जाति व भाषा के आधार पर) बांट लेते हैं। इसलिये सभी को ईश्वर के मिलन की राह में आने वाले इन प्रलोभनों, आडम्बरों व प्रपंचों से बचना चाहिए। अगर ईश्वर का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो क्या करना चाहिए? इस सवाल का जवाब हमारे अंतर्मन में बैठा ईश्वर स्वयं देता है और वह कहता है कि मैं तुम्हारे मन की भावना हूँ, आस्था हूँ, दया हूँ जो तुम्हें अच्छे कार्य करने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिये प्रेरित करता हूँ, चाहे फिर इन गुणों का जन्म तुम्हारे भीतर किसी भी विचारधारा का अनुसरण करने से हुआ हो। ये सब विचारधाराएं केवल मुझ तक पहुंचने के लिये मार्ग प्रदर्शक मात्र हैं। इसलिये हर मनुष्य को अपने सही जीवन उद्देश्य तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए। उसे स्वयं को भटकाव की स्थिति में डालकर किसी एक धर्म एवं संप्रदाय के नाम पर किसी एक ऐसे समाज के रूप में नहीं बांटना चाहिए जो घृणा और भेद-भाव से प्रेरित हो क्योंकि ईश्वर तो प्रेम का नाम है जिस तक केवल प्रेम के मार्ग पर चलकर ही पहुंचा जा सकता है।

- राखी सक्सेना निगम, सशक्त लेखिका व विचारक

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